Tuesday, May 20, 2025

-- और मैं पाकिस्तान के जाल में नही फसा





                                                      राष्ट्र-चिंतन


         -- और मैं पाकिस्तान के जाल में नही फसा

                         आचार्य श्रीहरि



कभी मुझे भी पाकिस्तान ने अपने जाल में फंसाने का असफल प्रयास किया था वह चारा डाला था, पासा फेका था। लेकिन मैंने इनकार कर दिया, पाकिस्तान के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था और कह दिया कि मेरी प्राथमिकता में मेरा देश है, मेरा धर्म है, आपका देश हमारा दुश्मन है, आपका देश इस्लाम को मानता है, इस्लाम मनुष्यता का दुश्मन है, शांति का विरोधी है, काफिर मानसिकता से ग्रसित है और खून-तलवार के बल पर राज करता है, मैं और मेरा धर्म सनातन मनुष्यता में विश्वास करता है, शांति में विश्वास करता है, सदभाव में विश्वास करता है, विश्व बन्धुत्व में विश्वास करता है। मेरी ऐसी प्रतिक्रिया को सुनकर वह दंग रह गया उसके चेहरे के रंग उड गये फिर वह बोल गया कि सोच लीजिये, एक अवसर है आपके पास, पाकिस्तान देखने और धूमने में क्या परेशानी है? मैं जासूस बनने और भारत का विरोध करने का प्रस्ताव थोडे दे रहा हू?
                       घटना का विस्तृत वर्णण यह है। उस समय पाकिस्तान अपने आप को एशिया का स्वयं भू शक्ति और नायक बनना चाहता था। पाकिस्तान के लिए वातावरण भी तैयार था। भारत की सत्ता पाकिस्तान के अनुरूप ही थी। भारत की सत्ता पर शिखंडी मानसिकता के मनमोहन सिंह बैठे थे जिनकी लगाम सोनिया गांधी के पास थी। सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के पास इतनी शक्ति और साहस के साथ ही साथ दूरदृष्टि भी नहीं थी कि वे पाकिस्तान के आतंक समर्थन पर सजा दे सके या फिर सबक सिखा सके। इसका उदाहरण मुबंई हमले के साथ ही साथ पाकिस्तान प्रायोजित कई आतंकी हमले थे, जिसके जवाब में नरेन्द्र मोदी की तरह हवाई स्ट्राइक करने और पाकिस्तान को सबक देने के लिए कोई दूरदृष्टि ही नहीं थी। इसके साथ ही साथ पाकिस्तान समर्थक सेक्युलर जमात थी, गुलाम फई की भारतीय टोली थी जो पाकिस्तान के पैसों पर अमेरिका जाकर मनोरंजन करती थी।
                 उस समय भारत में अपने पक्ष में जनमत तैयार करने और पाकिस्तान परस्त मीडिया तैयार करने की एक नीति आईएसआई ने बनायी थी। इस नीति के तहत पाकिस्तान पक्ष को मजबूत करने के लिए पत्रकार संगठन तैयार करने और पत्रकारों की फौज तैयार करने का लक्ष्या था।  इसी लक्ष्य के तहत पाकिस्तान ने साफमा नामक संगठन खडा किया था। साफ्मा को दक्षेस के आधार पर खडा किया गया था। कहा गया था साफमा दक्षिण एशियाई देशों के मीडिया कर्मियों का संगठन होगा जो दक्षिण एशिया में शांति और भाईचारे के लिए काम करेगा। पर सच्चाई यह थी कि कुछ ही दिनों में साफमा का लक्ष्य और जिहाद बेनकाब हो गया। इस संगठन को लीड करने वाले पत्रकार कांग्रेसी संस्कृति के थे और भारत विरोधी रूख भी रखते थे। भारत विरोधी रूख कैसे? इसके पक्ष में जनचर्चा यह थी कि साफमा की फंडिग के पीछे पाकिस्तान था और पाकिस्तान ही पर्दे के पीछे से नेतृत्व करता था। पाकिस्तान ने कोई एक-दो बार नहीं बल्कि अनेकों बार साफमा के पत्रकारों को पाकिस्तान बुलाया और मनोरंजन कराया। पाकिस्तान की यात्रा करने में साफमा से जुडे पत्रकारों की बहुत खातिरदारी होती थी, उनकी मन की इच्छाएं पूरी होती थी, इसलिए वे पाकिस्तान की यात्रा पर गर्व करते थे। साफमा के फंडिग की अभी भी जांच हो जाये तो फिर पाकिस्तान परस्ती साबित हो जायेगी। नरेन्द्र मोदी के आने के बाद पाकिस्तान प्रायोजित साफमा की चमक-दमक धूमिल हो गयी और राष्ट्रभक्ति के बुलडोजर से साफमा शक्तिहीन हो गया।
                          आईएसआई ने भारत की मीडिया संस्कृति को पहचानने में भूल कर दी थी, उसकी समझ धरातल से मेल नहीं खाती थी। साफमा पर अंग्रेजी के पत्रकारों का वर्चस्व था और उसमें नक्सली और आतंकी समर्थक पत्रकारों की भी उपस्थिति थी। ऐसी संस्कृति के पत्रकार परजीवी होते हैं, ये जनमत तैयार नहीं करते हैं और वोट डालने वालों को प्रभावित नहीं करते हैं। अभी अंग्रेजी अखबारों की पहुंच वोट डालने वालों तक सीमित है। इस कारण आईएसआई का प्लान विफल हो गया और साफमा पाकिस्तान के पक्ष में जनमत तैयार करने में सफल नहीं हुआ। भारत में जनमत तो क्षेत्रीय भाषा में निकलने वाले अखबार और चैनल तैयार करते हैं। दैनिक भास्कर और दैनिक जागरण की प्रसार संख्या के सामने अंग्रेजी का कोई अखबार खडा नहीं होता है।
                   फिर आईएसआई ने अपनी नीति की समीक्षा की थी। फिर उसने भारत के क्षेत्रीय अखबारों हिन्दी, बांग्ला, कन्नड, तमिल, असमिया, उडीया के पत्रकारों पर डोरा डाली थी। इसमें आईएसआई को कितनी सफलता मिली होगी, यह मैं नहीं कह सकता? ठीक इसी दौरान मेरे से मिलने एक व्यक्ति आया जो अपना परिचय पाकिस्तानी उच्चायोग के कर्मचारी के तौर पर दिया था। हमारी और उसकी मुलाकात आईएनएस विल्डिंग में हुई थी। आईएनएस विल्डिंग दिल्ली के रफी मांर्ग स्थित है। आईएनएस विल्डिंग के पास संजय जी की चाय की दुकान हुआ करती थी। संजय जी की चाय दुकान पर पत्रकारों की चहलकदमी होती रहती थी, मेला लगा रहता था, बडे से लेकर छोटे पत्रकारों का जमावडा लगा रहता था। चाय की दुकान पर चाय पीकर अपनी-अपनी पत्रकारिता दुनिया की कहानी कहते थे, पत्रकारिता दुनिया पर चर्चा करते थे, कहने का अर्थ यह है कि लडाके पत्रकारों का यहां पर जमावडा होता था, देश-दुनिया की खबरों का चिर-फाड होता था।
            2007 की घटना थी। मै कभी पाकिस्तान उच्चायोग गया नहीं था और न ही इसकी मुझे कभी कोई जरूरत ही पडी। इसलिए मैं उस अनजान कर्मचारी की पहचान पर कोई निर्णय नहीं कर सका था, उसकी पहचान पाकिस्तान उच्चायोग की थी, यह भी मुझे अविश्वसनीय लगा। फिर भी मैंने उसे कह दिया कि मिलने का लक्ष्य और तात्पर्य बताइये। मेरा नाम आपको किसने दिया, आपने मेरे नाम पर कितना रिशर्च किया है? फिर उसने एक कश्मीरी पत्रकार का नाम लिया। कहा कि उक्त कश्मीरी पत्रकार ने सुझाव दिया है कि विष्णुगुप्त को पाकिस्तान आमंत्रित कीजिये, पाकिस्तान से परिचित कराइये और अपनी छवि सुधारिये। मैंने फिर प्रश्न किया कि कश्मीरी पत्रकार ने मेरा नाम देने के पक्ष में क्या तर्क दिया था, मेरी कितनी बडाई की थी? फिर तथाकथित पाकिस्तानी उच्चायोग के कर्मचारी ने कहा कि उसने यह बताया कि भारत में अंग्रेजी नहीं बल्कि हिन्दी वाले जनमत तैयार करते हैं और हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ काॅलमनिष्ठ विष्णु गुप्त हैं, विष्णुगुप्त का आर्टिकल हिन्दी के दर्जनों अखबारों में छपते है। अगर आप विष्णुगुप्त को प्रभावित करेंगे और उनसे कुछ आर्टिकल लिखवा देंगे तो फिर कश्मीर पर पाकिस्तान पक्ष शीर्ष पर होगा। विष्णुगुप्त मेरा पुराना नाम है। उस समय मैं पाकिस्तान और कांग्रेस के खिलाफ खूब लिखता था और शक्ति से ज्यादा जनूनी और अभियानी था। इस कारण मैं कांग्रेस और अन्य देशद्रोहियों के निशाने पर रहा करता था।
                मैंने कहा कि फिर आप अपना लक्ष्य बताइये? उसने कहा कि मैं चाहता हूं कि आप पाकिस्तान का दौरा करें, एक महीने का दौरा होगा, पाकिस्तान के कोने-कोने घूमाया जायेगा, आप हिन्दी के अन्य पत्रकारों का समूह बना कर भी पाकिस्तान दौरा कर सकते हैं। दौरे का सारा खर्च पाकिस्तान की सरकार उठायेगी, सिर्फ आपको पासपोर्ट की छाया काॅपी देनी होगी, निमंत्रण आपको सेंड कर दिया जायेगा, आप एक बार उच्चायोग आकर राजदूत से बातचीत कर लीजिये। थोडे देर के लिए मैं चकित रह गया, थोडा गर्वावनित भी हुआ? हिन्दी अखबार में काॅलमनिष्ठ होने के बाद भी मुझे पाकिस्तान घूमने का आमंत्रण मिल रहा है। मैं पाकिस्तान जाउंगा और वहां घूमुंगा तो फिर पाकिस्तान के उपर कोई लेख लिखूंगा, भारत लौटने पर उस पर स्पीच दूंगा। कहने का अर्थ यह है कि कई तरह के ख्याल और मेरे मन में प्रश्न उठते थे। थोडे देर तक मुझे लगा कि ये प्रस्ताव बहुत ही अवसर प्रदान कराने वाले हैं। इसलिए इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया जाना चाहिए। मैंने उसे यह कह कर टरका दिया कि आपके इस प्रस्ताव पर विचार कर सकता हूं।
                   मेरे पास विचार करने के लिए मस्तिक था, अपना अनुभव था, अपना संघर्ष था, अपनी देशभक्ति थी? फिर उस समय का राजनीतिक वातावरण भी मेरे सामने था। मैं कांग्रेस विरोधी था, कांग्रेस के खिलाफ हमेशा अभियानरत था। कांग्रेस के लोग हमसे खार खाते थे। मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी की सरकार हमेशी दुश्मनी रखती थी। मुझे सबक सिखाना चाहती थी। इसलिए मैने अपने मस्तिक का एक्सरसाइज किया और सारे विन्द्रुओं पर विचार किया। मैं इस निष्कर्ष पर पहुंच गया कि इसके बदले में मुझे बहुत बडी कीमत चुकानी पडेगी, पाकिस्तान और आईएसआई मुझे टूल बना कर छोडेगे, मुझे मोहरा बना कर छोडेंगे, कई मनोरंजनकारी हथकंडों का शिकार बना कर छोडेंगे, मै इनकी ब्लैकमैंलिग का शिकार बन कर रह जाउंगा। मेरी पत्रकारिता का संहार हो जायेगा। मेरा कैरियर चैपट हो जायेगा, मेरी जिंदगी कलंकित हो जायेगी, मैं अपमान और तिरस्कार का पुतला बन कर रह जाउंगा।
                      मैं लालच से परे थे, पराये धन पर मौजमस्ती करने का विरोधी था। दुश्मन देश के हथकंडों से परिचित भी था। फिर मेरे सामने देशभक्ति थी, अपना देश और अपने लोग मेरे लिए प्यारे थे। दुश्मन देश परोपकारी और कल्याणकारी हो ही नहीं सकता है? दया और सहायता की बहुत कडी कीमत वसूलेगा। यह तय है। यही कारण था कि मैंने पाकिस्तानी उच्चायोग के उक्त कर्मचारी को दुबारा आने पर धमका कर भगा दिया था। ज्योति मल्होत्रा और देश भर में पाकिस्तानी जासूसों जो पकडे जा रहे हैं उसके पीछे रातोरात धनवान बनने और लोभ लालच से ग्रसित होने की मानसिकता कारण हैं। ज्योति मल्होत्रा जैसे सभी पाकिस्तानी जासूस अब भारत में सिर उठा कर नहीं चलेंगे, उनकी चमकती जिंदगी नर्क बन कर रह जायेगी, माधुरी गुप्ता की तरह-तरह ये सभी गुमनामी में तिल-तिल कर मरने के लिए विवश होंगे। क्योंकि अमीरी की कब्र पर जन्मी गरीबी की घास बहुत ही जहरीली और पीडा दायक होती है।  


संपर्क:
आचार्य श्रीहरि
नई दिल्ली
 Mobile      9315206123

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